आध्यात्मिक पत्रकारिता को एक विधा के रुप में
स्थापित करने का विनम्र प्रयास
आध्यात्मिक पत्रकारिता एक
उभरती हुई विधा है, जिसके दिग्दर्शन समाचार पत्रों में प्रकाशित हो
रहे नियमित स्तम्भ, साप्ताहिक परिशिष्ट, आध्यात्मिक टीवी चैनल्ज तथा वेब माध्यम में
आध्यात्मिक सामग्री के विस्फोट के रुप में किए जा सकते हैं। इसके बावजूद
आध्यात्मिक पत्रकारिता एक उपेक्षित विधा है, शायद
ही किसी मीडिया घराने ने इसको स्वतंत्र बीट के रुप में मान्यता दी हो, जिसमें विषय विशेषज्ञ काम करते हों। लेकिन इसके
कंटेट की पावनता, सात्विकता एवं प्रखरता के आधार पर इससे उमीदें
बहुत हैं। यदि सही ढंग से इसको मुख्यधारा की पत्रकारिता में स्थान मिल सके तथा
इसके लिए विशेषज्ञ पत्रकारों के प्रशिक्षण का तंत्र विकसित हो सके, तो यह स्वयं में एक बहुत बड़ा कार्य होगा। युग
मनीषियों का तो यहाँ तक कहना है कि आध्यात्मिक पत्रकारिताएक नए युग का सुत्रपात
कर सकती है। पत्रकारिता के क्षेत्र में यह सबसे बड़ी क्राँति होगी। लेकिन इन महान
संभावनाओं के साथ इसकी चुनौतियाँ भी कम नहीं। प्रस्तुत पुस्तक इन्हीं बिंदुओं पर
समुचित प्रकाश डालती है और आध्यात्मिक पत्रकारिता को पत्रकारिता की एक विधा के रुप
में स्थापित करने का एक बिनम्र प्रयास है। यह इस उभरती विधा पर संभवतः पहली समग्र
पुस्तक है।
विषय की संग्रहणीय एवं पठनीय पुस्तक
वरिष्ठ पत्रकार, विकास
संचारक एवं वर्तमान में EMRC, IIT Roorkee के
निर्देशक, राजकुमार भारद्वाज के शब्दों में - आध्यात्मिक पत्रकारिता विषयक यह पुस्तक अपने आप
में एक अनूठी पुस्तक है, प्रत्युत यह इस क्षेत्र की
हस्ताक्षर पुस्तिका सिद्ध हो सकती है, क्योंकि
इससे पहले आध्यात्मिक पत्रकारिता के विषय में बहुत ही कम लिखा गया है। लेखक डॉ. सुखनंदन सिंह में आध्यात्मिक पत्रकारिता पर
लिखने का विचार उस शांतिकुंज की परंपरा से प्रस्फुटित हुआ जिसका बीजारोपण गुरुदेव
पं. श्रीरामशर्मा आचार्य ने किया था। गुरुदेव इस
युग के ऐसे सबसे बड़े संवादक थे, जिन्होंने
सबसे समान संवाद की सर्वाधिक सम्पन्न सुपरम्परा का सुमार्ग दिखाया। उनका मानना था
किआध्यात्मिक पत्रकारिता की पृष्ठभूमि में विचारक्राँति के माध्यम से भारत को पुनः
विश्वगुरु की उपाधि दी जा सकती है। वर्तमान अध्यात्मच्युत समाज नाना प्रकार के तनावों
और जीवन की कठिनाईयों से जूझ रहा है। मानवीय संबंध और प्रकृति के प्रति
संवेदनशीलता अपने निचले स्तर पर पहुंच गए हैं।आस्था संकट के इस दौर में आध्यात्मिक पत्रकारिता का महत्व और बढ़ गया है। धर्म और
अध्यात्म की पत्रकारिता गंभीरतापरक हो, तो आज
के युग में मानवता पर यह बड़ा उपकार होगा। अत्यंत
सहज से इस गूढ़ विषय पर प्रकाश डालती यह पुस्तक निश्चित ही नवोदितों का पथ
प्रदर्शन करेगी। अपनी सम्यक प्रस्तुति के आधार पर पुस्तक ने अकादमिक स्तर पर
आध्यात्मिक पत्रकारिता को प्रतिष्ठित करने की ठोस पृष्ठभूमि तैयार कर दी है। यह
पुस्तक पत्रकारों, विद्यार्थियों और शोधार्थियों के लिए संग्रहणीय
और सदैव पठनीय रहेगी।
पुस्तक निम्न 15 अध्यायों में विभाजित है -
·
आध्यात्मिक
पत्रकारिता - उभरता स्वरुप एवं उपेक्षित विधा
·
धर्म, अध्यात्म
एवं आध्यात्मिक पत्रकारिता
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अध्यात्म
की आवश्यकता, महत्व एवं आधारभूत सोपान
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आध्यात्मिक
पत्रकारिता की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि एवं विकास यात्रा
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समाचार
पत्रों में हो रही आध्यात्मिक कवरेज
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समाचार
एवं साहित्यिक पत्रिकाओं में प्रस्तुत आध्यात्मिक सामग्री
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आध्यात्मिक
पत्रिकाओं की विषयवस्तु एवं प्रस्तुतीकरण
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टीवी
माध्यमों में प्रसारित हो रहा अध्यात्म
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वेब
माध्यम में आध्यात्मिक सामग्री का विस्फोट
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वर्तमान
मूल्य संकट एवं आध्यात्मिक पत्रकारिता
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आध्यात्मिक
पत्रकारिता की संभावनाएंएवं चुनौतियाँ
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आध्यात्मिक पत्रकारिता का सम्यक स्वरुप
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विशेषज्ञों
की राय में आध्यात्मिक पत्रकारिता
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उपसंहारएवंआध्यात्मिक
पत्रकारिता का भविष्य
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वर्तमान
शोध सीमाएं एवं कतिपय सुझाव
आध्यात्मिक
पत्रकारिता को दिशा देता नैष्ठिक प्रयास
प्रो. गोविंद सिंह, वरिष्ठ
पत्रकार एवं शिक्षाविद, वर्तमान में भारतीय संचार संस्थान (IIMC), दिल्ली में
डीन एकेडमिक्स के शब्दों में - आज धार्मिक
- आध्यात्मिक
पत्रकारिता के शिक्षण की तीव्र आवश्यकता है। जब धर्म हमारे जीवन में इतनी
आक्रामकता के साथ प्रवेश कर रहा हो तो आप शिक्षा या मीडिया में कैसे उसे नजरंदाज
कर सकते हैं? लेकिन सच
यही है कि अब तक हमारे मीडिया में, मीडिया संस्थानों में इसकी तरफ ध्यान नहीं दिया
गया। एक बंधे-बँधाये ढर्रे पर रिपोर्टिंग हो रही है, परिशिष्ठ
निकल रहे हैं। समाचार पत्रों में धर्म की कोई बीट नहीं होती। धर्म का परिशिष्ठ
निकालने के लिए कोई विशेषज्ञ नहीं होते। उनमें गलतियाँ भी बहुत होती हैं। इसलिए यह
जरूरी है कि मीडिया शिक्षा में और मीडिया घरानों में धर्म के साथ जो भेदभाव हो रहा
है, वह बंद हो।
यह खुशी की बात है कि इधर धार्मिक-आध्यात्मिक पत्रकारिता की ओर लोगों का ध्यान जा रहा
है। यह पुस्तक उसी का एक विरल उदाहरण है। इस पुस्तक की रूपरेखा को देखकर मुझे
हार्दिक प्रसन्नता हो रही है। प्रो. सुखनंदन सिंह ने पूरे मनोयोग से आध्यात्मिक
पत्रकारिता का न सिर्फ अध्ययन किया है, अपितु उसे प्रतिष्ठापित भी किया है। इसके लिए वे
साधुवाद के अधिकारी हैं। निश्चय ही आपके हाथों में पहुँच कर पुस्तक अपना काम करेगी
और आध्यात्मिक पत्रकारिता को एक दिशा देगी।